अमित शाह के नए आपराधिक न्याय कानून क्या है|?

20 दिसंबर को राजद्रोह और आतंकवाद का जिक्र कर गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष पर निशाना साधा। अमित शाह के नए आपराधिक न्याय कानून से जुडे तीन बिल लोकसभा में पेश किये और वो बिल लोकसभा से पास भी हो गए हैं। सीआरपीसी आइपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता बिल 2020, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023 बिल लोकसभा से पास हुए।

क्रिमिनल लॉ बिल के तहत अब रोडवेज या सड़क पर ऐक्सिडेंट करके फरार होने वाले लोग कानून से नहीं बच पाएंगे। उनके लिए सख्त कानून आया है। इसके पर ऐक्सिडेंट करके फरार होने के जुर्म में 10 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान है।

वहीं अगर ऐक्सिडेंट करने वाला व्यक्ति घायल व्यक्ति को हॉस्पिटल पहुंचाता है तो उसकी सजा कम की जा सकती। है।

नये कानून के मुताबिक मॉब लिंचिंग के लिए मौत की सजा का प्रावधान होगा। मॉब लिंचिंग के लिए कम से कम 7 साल की कैद से लेकर या आजीवन कारावास या मौत तक का प्रावधान किया गया। है

नस्ल, जाति, समुदाय या किसी संख्या के आधार पर। एक टोला एकत्रित होकर किसी को मार देता है तो उसमें मैक्सिमम फांसी तक की सजा की है।

नहीं बिल के मुताबिक राजद्रोह की परिभाषा को राज्य यानी सरकार के खिलाफ़ अपराध से बदलकर देशद्रोह यानी राष्ट्र के खिलाफ़ अपराध कर दिया गया है।

इसके साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए राजद्रोह कानून को निरस्त कर दिया गया है।

विधेयक में रेप और बच्चों के खिलाफ़ अपराध पर धाराएं बदली गई है। 18 साल से कम उम्र की बच्ची से रेप में आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान है।

गैंगरेप के दोषी को 20 साल तक की सजा या जिंदा रहने तक जेल हो सकती है।

वहीं रेप या महिलाओं के खिलाफ़ अपराध के अन्य मामलों में अगर पीड़िता का बयान लिया जाता है तो घर जाकर 2 दिन के अंदर लिया जाएगा। पीड़िता के बयान की पूरी रिकॉर्डिंग की जाएगी और 24 घंटे के अंदर उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करना होगा। पुलिस की भी जवाबदेही तय होगी।

अब कोई गिरफ्तार होगा तो पुलिस उसके परिवार को जानकारी देगी। पहले जरूरी नहीं था किसी भी केस में 90 दिनों में क्या हुआ, इसकी जानकारी पुलिस पीड़ित को देगी।

देश में कई केस लटके हुए हैं। बॉम्बे ब्लास्ट जैसे केसों के आरोपी पाकिस्तान जैसे देशों में छिपे हुए हैं। अब उनके यहाँ आने की जरूरत नहीं है। अगर 90 दिनों के भीतर कोर्ट के सामने पेश नहीं होते तो उसकी गैर मौजूदगी में ट्रायल होगा। ब्लास्ट हो या कोई और, वो लोग पाकिस्तान में या कहीं और देशों में शरण लेकर बैठे हैं, ट्रायल नहीं चलती है। अब इनके यहाँ आने की जरूरत नहीं है। 90 दिन के अगर। वो कोर्ट के सामने नहीं आते। तो उनकी अनुपस्थिति में ट्रायल होगी। एक सरकारी वकील उनकी पैरवी करेगा। खांसी भी होगी जन्म टी पी।

अगर उसे सजा का एक तिहाई समय जेल में गुजार दिया है तो उसे रिहा किया जा सकता है। बेल मिल सकती है। गंभीर मामलों में आधिसेशा काटने के बाद रिहाई मिल सकती है। जजमेंट सालों तक नहीं लटकाया जा सकता।

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